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रुबाई

Man ki laharen
Man ki laharen
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रुबाई
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ज़र्रा ज़र्रा है जुदा ना मलकियत उनकी अलग
फिर करोड़ों में मेरी ये शख़्सियत कैसे अलग?
यह उतारा दिल में जिसने सच्चा बुनियादी सवाल
देखता ख़ुद में खुदाई ना खुदा जिससे अलग
– अरुण

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