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रुबाई १
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हांथ वक्त का थामा तो माजी में ले जाता है
वक़्त का सरोकार… जिंदगी से हट जाता है
जिंदगी की साँस में सांसे मिलाओ ओ’ जिओ
देख लो कैसा मज़ा जीने का… फिर आता है
– अरुण
रुबाई २
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बूंद चाहें कुछ भी कर लें ना समंदर जान पाएं
खुद समंदर हो सकें जब लहर में गोता लगाएं
जाननेसे कित्ना अच्छा ! जान बन जाना किसीकी
एक हो जाना समझना एक क्षण सारी दिशाएं
– अरुण
रुबाई ३
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तार छिड़ते…..वेदना से गीत झरता है
विरह के उपरांत ही मनमीत मिलता है
प्रेम शब्दों में नही…संवेदनामय दर्द है
आर्तता सुन प्रार्थना की देव फलता है
– अरुण
रुबाई ४
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हरारत जिंदगी की सासों को छू जाती है
लफ़्ज़ों में पकड़ो, बाहर निकल जाती है
लफ़्ज़ों को न हासिल है ये जिंदगी कभी
जिंदगी दार्शनिकों को न समझ आती है
– अरुण
रुबाई ५
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दूसरों के साथ रहो…नाम पहनना होगा
किसी भाष को जुबान पे ..रखना होगा
जिसका न कोई नाम भाषा, उस अज्ञेय को
भीतर शांत गुफ़ाओं में ही जनना होगा
– अरुण
रुबाई ६
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पत्ते फड़फड़ाते हैं ……डोल रही हैं डालियाँ
किसने उकसाया हवा को ? लेने अंगडाईयां
उसने ही शायद……जिसने है मुझे फुसलाया
खुले माहौल ले आया, ..छीन मेरी तनहाईयां
– अरुण
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