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रुबाई

Man ki laharen
Man ki laharen
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रुबाई
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मन बिना यह तन चला होता न होती त्रासदी
अश्व ख़ुलकर भागता रहता न होता सारथी
हाय! तन में क्यों सभी के मन की विपदा आ ढली
रिश्ता तन मन का सही जिसमें घटा….सत्यार्थी
– अरुण

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