Man ki laharen
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रुबाई
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तजुर्बात जहांतक सोच सकें..अंदाज़ा वहांतक जाता है
आँखों को दिखे जितना रस्ता …उतना ही भरोसा होता है
हम दुनियादारी में उलझे…….अपने से परे सोचा ही कहां
धुँधलीसी नज़र ख़ुदगर्ज कदम….खुद से न आगे जाता है
– अरुण
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