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दो रुबाई आज के लिए

Man ki laharen
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दो रुबाई आज के लिए
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दिल बना ख़तरों का अरमान ही
ताक़त से भर आये… क़ुर्बान ही
न किनारा न सहारा न मंज़िल कोई
काम आये उसके..मयन तूफ़ान ही

मयन = तत्क्षण
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लिए चाहत उजाले की संवरता है अंधेरा
पता किसको कहाँ से लौट आएगा सवेरा ?
प्रतिक्षा है ये तीखी रात बीते बात बीते
जला आख़िर अंधेरा ही जगा सच्चा सवेरा
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– अरुण

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