Menu
blogid : 13187 postid : 764137

मन दुखी होने की ही व्यवस्था है …

Man ki laharen
Man ki laharen
  • 593 Posts
  • 120 Comments

मन तो निराश होने, दुखी होने या उदास होने की ही व्यवस्था है. इस स्थिति से भागने का विचार… यानि आशा भी, इसी व्यवस्था का हिस्सा है. इस व्यवस्था को चालू रखनेवाले सभी कारण बाहर से आते हैं …जैसे ..खेतिहर …दुखी है ..क्योंकि इस वर्ष वर्षा नहीं हुई, बाप निराश है …क्योंकि बेटा फेल हो गया, व्यापारी उदास है क्योंकि आज कोई बिक्री नही……किसी ने सम्मान न दिया…किसी ने अपमान किया….किसी ने लूट लिया…. इसीतरह सारे कारक या घटक.. बाहर बैठे हुए हैं. अतिशयोक्ति न होगी यदि कोई कहे … “परेशां हूँ इसीलिए क्योंकि आज किसीने परेशां न किया”
ऐसे दुखदाई ‘मन’ से न तो पलायन संभव है और न ही इसे उखाड़ फेंकना…… संभव है तो इतना ही कि …
—-
इस मन को सर के (भीतर या ऊपर से) गुजर जाने दो. इसके साथ अपनी निजता (इसका मतलब ‘अहंकार’ नही) को न बह जाने दो. सारी गड़बड़ तो यही है की आदमी के जिंदगी में … हवा के साथ जमीन भी उड़ती है ….बहती नदी किनारों को भी बहा ले जाती है.. सिर्फ इसीलिए क्योंकि जमीन को लगता है ..’मै ही हवा हूँ’, किनारे अपने को ही नदी मान बैठते हैं.
-अरुण

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply