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-मस्तिष्क के पास याद जगाने की क्षमता है परन्तु मस्तिष्क याद नहीं करता, न ही मस्तिष्क के भीतर कोई याद-संचय है. याद तो याद को ही आती है. याद ही याद को बुलाती है, याद ही याद की कल्पना करते हुए स्वप्न, चिंता, सुख, दुःख …ऐसी कई भाव स्थितियों का एहसास उभारती है.
-जिस तरह नर्तक से नृत्य जुदा नहीं है, ठीक वैसे ही, याद से याद-कर्ता अलग नहीं क्योंकि याद ही याद करती है. याद और याद-कर्ता के भिन्न होने का भ्रम, अहंकार का भाव पैदा कर देता है.
-यादचक्र या याद-विश्व में खोया अहंकार (जो स्वयं एक भ्रम ही है) असावधान होने से ही, ‘याद-कर्ता के अस्तित्व’ का गलत एहसास जगाता है.
-मतलब, पूर्ण सावधानता ही इस गुत्थी को तत्क्षण सुलझा सकती है
मित्रों ! ये बातें शायद उन्हें ही दिखाई दे सकती है, जो अपने भीतर बड़े ही त्रयस्थ भाव से और बड़ी ही सावधानी से झांकने के लिए प्रवृत्त हैं. बाकी लोगों के लिए यह एक जटिल information मात्र है. इसीलिए
कई लोग इसे महज बकवास भी समझ सकते हैं
-अरुण
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