Man ki laharen
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इस क्षण..
अबतक मै देखता रहा हूँ कि अपने तन, मन, धन इत्यादि से लगाव या तादात्म हो जाने के कारण ….मैं उन्हें अपनी मान बैठा, इतना ही नही, वे सब मै ही हूँ…. ऐसा समझ बैठा हँू।…
इस क्षण, इससे और भी गहराईवाली दृष्टि ने एक और गहनतम बात स्पष्ट कर दी है वह यह कि… अस्तित्व या इसके किसी भी अंश को, मेरा,तेरा,इसका..हमारा..उनका जैसे अधिकार संबोधन लागू ही नहीं होते।
– अरुण
Posted by Arun Khadilkar at 10:44 AM
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