Menu
blogid : 13187 postid : 587704

मन के पार

Man ki laharen
Man ki laharen
  • 593 Posts
  • 120 Comments

जब तक वह किनारे पर न आ जाए,
मछली को सागर का क्या पता चले,
उसे ‘सागर के होने की’ –कैसी खबर
मन-सागर में खोया आदमी क्या जाने
मन-सागर होता क्या है?
चेतना के सनातन किनारे पर खड़ा आदमी ही
मन-सागर को पूरी तरह निहार सकता है क्योंकि वह
मन-कणों, अंशों, लहरों, थपेड़ों से बने
मानसिक व्यापार या उलझनों से
पूरी तरह बाहर निकल चुका होगा,
चेतना में शरीर है पर शरीर में उलझे को
चेतना का ख्याल ही नहीं,
मन, शरीर की उप-उपज है पर
मन में उलझे को भी चेतना का स्पर्श नहीं
जो इन दोनों के बाहर आकर निहार सका
उसे ही मन के पार वाली बात समझ आती है
-अरुण

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply