Man ki laharen
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साँस हूँ मैं, चल रही,
अज्ञात का सब खेल है
कुछ भी हूँ तो
मोल उसका कुछ नहीं
सब खेल है
शून्य का हूँ जोड़ केवल
कल्पना की स्लेट पर
कल्पना भी चेतना के
झरन का सब खेल है
चेतना भी साँस के ही
झरन का सब खेल है
-अरुण
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