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सत्य समयातीत

Man ki laharen
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जिसकी कोई सीमा है

उस की ही हम संकल्पना कर सकते है,

आदमी जिस समय की बात करता है

वह उसकी सीमित कल्पना का प्रतिफल है

जब उसका चिन्तन सीमा-रहित हो जाता है

तब उस चिंतन में सनातन (eternal) की समझ

जाग उठती है और इसीलिए ऐसा चिन्तक

अपनी भाषा-अभिव्यक्ति में

सत्य को समयातीत कहता है

-अरुण

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