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अब तक तो केवल भ्रष्टाचार ही चलता रहा,
अब ‘भ्रष्टाचार’ – इस विषय की भी बहुत चलती है,
हर चर्चा अब इसी से शुरू होकर इसी पर थमती है
चर्चा की आजादी सब को है.
तथाकथित भोलीभाली समझी जानेवाली जनता से लेकर
तथाकथित संदिग्ध भ्रष्टाचारी राजनीतिज्ञों और शीर्षसत्ताओं तक –
सबके के दिलों में चर्चा की भारी दमक है
सभी के होंठों को आरोप-प्रत्यरोपों की ललक है
आरोपों के इशारे सभी दिशाओं से
और सभी दिशाओं में घुमते नजर आते हैं
आरोपों को नही मालूम कौन पक्ष और कौन विपक्ष है
और इसीलिए सभी तथाकथित सत्ताएँ बाहर से बहुत ही
बडबोली तो भीतर में शायद बड़ी पोली हैं
सबसे ज्यादा निर्भीड आवाज यदि किसी की है तो वो है मिडिया और वे सब
तथाकथित साहसी लोग जिनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है,
व्यवस्था बदलने के लिए निकले ये लोग
किसी का बदला लेने निकले लगते हैं
जनता की जिम्मेदारी उठाने का दावा करते हैं
परन्तु आचरण में बड़े गैरजिम्मेदाराना दिखते हैं
जनता भी वैसी ही खुश दिखती है
जैसी फिल्मों में मारधाड़ देखकर खुश होती है
समाचार में सम-आचार कम और चटनी-अचार अधिक दिखता है
क्योंकि वैसा ही कहना-छापना
पड़ता है जो लोंगों में बिकता है
भ्रष्टाचार को दूर करने और
समाज में सापेक्ष स्वच्छ आचरण
फैलाने की इस मुहीम में भी
स्वच्छ आचरण की जरूरत है…..
यह बात अगर भूल गयी तो
मुहीम भी चूक गयी – यह निश्चित है
-अरुण
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